अहमदाबाद। डाकोर में रणछोड़ राय मंदिर में गत 45 वर्षों से भीख मांग कर अपना गुजर बसर करने वाले वयो वृद्ध भिखारी जब डाकोर के 2500 ब्राह्मणों को भोजन करवाया तब लोग ताज्जुब में पड़ गये। इस सूरदास भिखारी का नाम भगवानदास शंकरलाल जोशी है। वे सुबह चार बजे मंगला आरती के साथ ही डाकोर मंदिर के कोट के दरवाजे पर पहुंच जाते हैं। तरह-तरह के भजन गाते हैं। इस मंदिर के दरवाजे पर भीख मांगते हैं। वे यहां के गोपालपुरा क्षेत्र के एक मकान में किराए पर रहते हैं। उन्होंने डाकोर के ब्राह्मणों को सार्वजनिक रूप से आमंत्रित कर भोजन करवाया।
करना होगा तर्पण
जीवन के आखिरी पड़ाव पर पहुंचे भगवानदास ने बताया कि वे 45 वर्षों से डाकोर में रहते हैं। रणछोड़ राय के मंदिर में भीख मांगकर मैंने जो कुछ भी एकत्र किया है उसका तर्पण तो उन्हें ही करना पड़ेगा। डाकोर के ब्राह्मणों के यहां विविध प्रसंगों पर मैंने भोजन किया है। मैंनें पूरी जिंदगी जिन लोगों का खाया है, कभी हमें भी उन्हें भोजन करवाना चाहिए। मैंने भिक्षा मांगकर जो कुछ भी एकत्र किया है, वह समाज का ही है। मुझे अगले जन्म के लिए परोपकार करना चाहिए।
ब्राह्मणों को किया आमंत्रित
यह विचार मन में आते ही मैंने डाकोर के टावर चौक में ब्राह्मणों को आमंत्रित करने वाला सार्वजनिक सूचना बोर्ड लगवा दिया था। मैने यहां पथिक आश्रम की अंबावाडी में डाकोर के बाह्मणों को दाल, भात, सब्जी और लड्डू का भोजन करवाया। इस ब्रह्म चौर्यासी में त्रिवेदी, मेवाड़ा, तपोधन, श्रीगोण, तथा खेड़ावाड़ जैसे चौर्यासी जाति के ब्राह्मण भोजन के लिए आते हैं, इसलिए इसे ब्रह्मचौर्यासी कहते हैं। मुझे संतोष है कि यहां तकरीबन 2500 ब्राह्मणों ने भोजन किया।
भीख मांगने के अलावा भजन भी गाते हैं भगवानदास
इस बारे में डाकोर के ब्राह्मणों के अगुवा राकेश भाई तंबोली ने बताया कि भगवानदास की विशेषता है कि वे भीख मांगने के अलावा अच्छे भजनिक भी हैं। वे देशी भजनों के गायक हैं, वे जन्म से ही नेत्रहीन हैं फिर भी उन्हें एक हजार भजन कंठस्थ हैं। कोई भी व्यक्ति डाकोर मंदिर में धजा चढ़ाने आता है, तो भक्त समुदाय के आगे भगवानदास भजन गाते हुए चलते हैं। डाकोर में रंगअवधूत भजन मंडल के वे स्टार गायक हैं। जब वे सब्जियों के नाम के साथ प्रभु के नाम को शामिल करनेवाला भजन ह्यमेरे करेला में कृष्ण, मेरे गिलोड़ा में गोविंद, गाते हैं तब वन्स मोर वन्स मोर की झड़ी लग जाती है।
आवाज से ही पहचान लेते हैं
यूं तो भगवानदास बनासकांठा के भाखरी गांव के मूल वतनी हैं। वे चार भाई हैं। बचपन से ही नेत्रहीन होने के कारण संसार से मोहभंग हो गया था। वे संयोगवश डाकोर आ गये और डाकोर मंदिर के द्वार पर भजन गाने लगे। उन्हें यहां 45 वर्ष हो गये हैं। वे किसी भी व्यक्ति को उसकी आवाज से ही पहचान लेते हैं। वे जिस व्यक्ति को एक बार बात करते सुन लेते हैं, उसे दूसरी बार सुनते ही नाम से बुलाते हैं। उनके पास कोई सम्पति नहीं है, परन्तु जो कुछ भी है, उन्हें उसी में संतोष हैं। उन्होंने लाखों रूपये खर्चकर डाकोर के ब्राह्मणों को भोजन करवाया। सामान्य तौर पर विविध प्रसंगों में लोगों के यहां मुफ्त में भोजन करने वाले भिखारी भक्त ने पहली बार रणछोड़ राय के डाकोर में ब्राह्मणों को भोजन करवाया।