सहारनपुर । बाबा साहब डॉ.भीमराव आंबेडकर एक मौलिक चितक तथा महान लेखक थे। उन्होंने अपनी सभी पुस्तकें अंग्रेजी में लिखीं। उनकी पुस्तकों में एनहिलेशन ऑफ कास्ट, कास्ट इन इंडिया, आर्मी इन इंडिया, हू वाज शुद्राज, थॉट ऑन पाकिस्तान, द अनटचेबल्स तथा रिडल्स इन हिन्दुज्म हैं। इन सभी पुस्तकों का मराठी, हिदी तथा देश की भिन्न-भिन्न भाषाओं में जैसे-जैसे अनुवाद होता गया वैसे वंचित वर्गों में ज्ञान का प्रकाश फैलता गया।
भारत सरकार ने उन्हें 14 अप्रैल 1990 को देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देकर अपनी कृतज्ञता ज्ञापित की। सेवानिवृत्त प्राचार्य एवं उप्र माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड इलाहाबाद के पूर्व सदस्य डा. एन सिंह ने बताया कि बाबा साहब डा. भीमराव आंबेडकर ने बड़ौदा नरेश सया जी गायकवाड द्वारा दी गई छात्रवृत्ति के कारण अमेरिका जाकर एमए पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। बड़ौदा हाउस में नौकरी के दौरान वहां अधिकारियों का उनके प्रति अपमानजनक बर्ताव था। वह धीरे-धीरे मजबूती के साथ राजनीति की ओर बढ़ रहे थे। उनके कारण पूना पैक्ट हुआ और दलित वर्ग को सेवा तथा राजनीतिक पदों पर आरक्षण प्राप्त हुआ, जो राजनीतिक क्षेत्र में अभी भी अधूरा है। देश आजाद हुआ तो बाबा साहब को संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया। इस समिति में अल्लादी कृष्ण स्वामी, एन गोपाल स्वामी आयंगर, सैयद एम सादुल्ला, सर बीएन राव, सर बीएल मित्तर, डा. केएम मुंशी, डीपी खेतान सदस्य बनाए गए। बाद में सर बीएल मित्तर के स्थान पर एन माधवराव और डीपी खेतान के स्थान पर टीटी कृष्णामाचारी को सदस्य बनाया गया। लेकिन भारत के संविधान की रचना अकेले बाबा साहब ने ही की।
डा. आंबेडकर ने हिदू कोड बिल के माध्यम से समस्त कुप्रथाओं को समाप्त करने का प्रयास किया था। लेकिन संविधान सभा में इस बिल के पास न होने पर उन्होंने भारत सरकार के कानून मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन धीरे-धीरे करके पूरा हिदू कोड बिल अब तक भारत की संसद में पारित हो चुका है। इससे प्रमाणित होता है कि डा. आंबेडकर अपने समय से लगभग 100 वर्ष आगे की सोच रखते थे। वह एक ऐसे महामानव थे जिन्होंने दलितों और पिछड़ों को अत्याचार व असमानता की बेड़ियों से मुक्त कराकर उन्हें समानता और सम्मानजनक जीवन का अधिकारी बनाया।